जैसे -जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं राम मंदिर मुद्दे पर तरह -तरह के बयान सामने आ रहे हैं। कोई इसे राजनीति से जोड़ रहा है तो कोई धार्मिक आस्था से और कोई सांप्रदायिकता से। यह भी सच है कि 2014 के चुनाव में भाजपा ने जिन बातों को आधार बनाकर जनता का विश्वास जीता था उनमें राम मंदिर प्रमुख मुद्दा था और अब चुनावों के पास आते आते जनता और विपक्ष दोनो ही इस बात को लेकर कड़ा रुख अपना रहे हैं। योग बाबा रामदेव ने भी इस सम्बंध में अपना बयान देते हुए कहा कि अब समय आ गया है जब सरकार को राम मंदिर के निर्माण के लिए एक अध्यादेश लाना चाहिए। अगर राम मंदिर नहीं बना तो भाजपा से जनता का भरोसा उठ जाएगा। भारत के लाखों करोड़ों हिन्दू राम मंदिर बनते हुए देखना चाहते हैं। अपनी बात को रखते हुए उन्होनें यह भी कहा कि एक लोकतंत्र में संसद न्याय के लिए शीर्ष मंदिर है और माननीय प्रधानमंत्री को चाहिए कि लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हुए इस संदर्भ में अध्यादेश जारी करें। अपनी बात का समर्थन करते हुए उन्होंने यब भी कहा कि राम राजनीति का विषय नहीं बल्कि देश का गौरव हैं, हमारी संस्कृति हैं, हमारी आत्मा है। अगर लोग खुद राम मंदिर निर्माण का कार्य अपने हाथों में लेंगे तो इसका अर्थ यही होगा कि उन्हें न्यायपालिका पर विश्वास नहीं।
कुछ दिन पहले ही इस मुद्दे पर कांग्रेस के नेता इमरान मसूद ने कहा था कि राम मंदिर का निर्माण हो लेकिन कानून के दायरे में रहकर। उन्होंने भाजपा पर आरोप लगाते हुए कहा कि प्रदेश में 52 लाख वोट एक पक्ष के काटने की तैयारी में हैं और भाजपा यह सब चुनावों में हार जाने के डर से कर रही है।