क्या विश्वास सचमुच चमत्कार करने में सक्षम होता है?

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कल्पनाशील परिकल्पना बनाम दृढ़ निश्चय

कल्पना को साकार करने में विश्वास बहुत बड़ी भूमिका निभाता है। फिर चाहे कल्पना भगवान की हो या फिर शैतान की। इस बात को सिद्ध करने के लिए इस मुद्दे को उठाते हैं कि राम रहीम के डेरा छोड़ने के बाद उसके स्वयंसेवकों का क्या हुआ?

अगर हम विश्वास की बात करें तो विश्वास एक भावना है, जो किसी को एक रूप देकर या आदर्श मानकर अथवा अपनी विचारधारा बनाकर उसका अनुसरण करती है लेकिन अगर किसी कारण इस भावना को कोई ठेस पहुंचे या यह विश्वास डगमगाए तो केवल दृढ़ इच्छाशक्ति ही उसे दोबारा मजबूत बनाती है। इस बात को हम बाबा गुरमीत राम रहीम के अनुयायियों व उनकी आस्था से जोड़कर देख सकते हैं। 25 अगस्त 2017 को बाबा की गिरफ्तारी के बाद डेरा पूरी तरह से सेना और पुलिस की निगरानी में आ चुका था और डेरे के परिसर में सर्च ऑपरेशन के अंतर्गत न तो किसी को डेरे में रहने का अधिकार था और ना ही पूजा करने का। बाबा राम रहीम को 20 साल को सजा सुनाई गई और डेरे में रहने वाले उनके अनुयायियों और स्वयंसेवकों को एक प्रश्नचिन्ह के साथ छोड़ दिया गया। उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ा कि राम रहीम पर संगीन आरोप लगे या फिर उन्हें सजा क्यों हुई? बल्कि उनकी आस्था और भी हैरान कर देने वाली थी। उन्होंने ध्यान करना और जुड़ना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उन्होंने कल्याणकारी गतिविधियों को फिर से करना शुरू कर दिया। अब ऐसी कहानियां सामने आने लगी जिन पर विश्वास ही नहीं किया जा सकता। अब बाबा राम रहीम के लोगों ने यह कहना शुरू कर दिया कि उन्हें अलग-अलग चीज़ों जैसे चपाती, अलमारी, दीवारों, फलों यहां तक कि चंद्रमा आदि में भी राम रहीम का प्रतिबिंब दिखाई देता है।

अब इस बात को क्या माने कि क्या सचमुच बाबा इनको अलग-अलग चीजों में अपनी छवि दिखा रहा है या यह इन अंधभक्तों की कोरी कल्पना है? यह बहुत बड़ा बहस का मुद्दा है।अगर हम मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो सम्मोहन या काले जादू जैसे कई दिलचस्प पहलू भी सामने आ सकते हैं लेकिन यह सारी बातें अपने मन को समझाने या विचारों को बदलने के लिए ठीक हैं परंतु इनके विश्वास की गहराई को देखा जाए क्या किसी के रूप को अलग अलग जगह देख पाना आसान होगा? यह समझने के लिए कि वास्तव में सच क्या है, बहुत से लोग यह देखने भी गए और निरंतर जा भी रहे हैं।

कहते हैं कि कुछ भी प्रतिबिंबित करना हमारी गहरी कल्पना और गहन आकांक्षा का उत्तर है। हमारे मस्तिष्क में हम किसी चीज़ की कल्पना करते हैं, उसके विषय में निरन्तर सोचते हैं तो हमें वैसा ही दिखाई देना शुरू हो जाता है। स्वयंसेवकों की सारी बातें कितनी सही और कितनी गलत हैं यह कहना मुश्किल है। विज्ञान के इस युग में चमत्कारों पर विश्वास करना हम लोगों की कल्पना से परे की बात है। लेकिन इस तरह की अवधारणा बनाकर एक लंबी कल्पना करना भी कम मजेदार नहीं है। इन सब बातों से यह तो सामने आ रहा है कि जेल में बंद बाबा राम रहीम का जलवा अभी भी कम नहीं हुआ है।इस जलवे का मूल्यांकन आमजन से ज्यादा कोई सियासत दान बेहतर कर सकता है।

समय एक महान चिकित्सक है और यह सारे घाव भर भी देता है। जिस काम को हम बार -बार करने का प्रयास करते हैं उसमें सफलता भी प्राप्त करते हैं। बाबा के अनुयायियों के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। उन्होनें मिलकर डेरे में बाबा के आने की और उनके होने की एक मजबूत कल्पना की और उन्हें अपने आस-पास देखना शुरू कर दिया। चाहे हम कितने भी तर्क दें लेकिन एक बात तो सच है कि इन लोगों का ध्यान और विश्वास अचूक है जो इनके लिए चमत्कार करता है।
जो प्रतिबिंब के सिद्धांत को मानते हैं वो इस बात पर विश्वास नहीं करते लेकिन यह कहना भी गलत न होगा कि विश्वास और कल्पना मिलकर सबकुछ सुंदर या मनचाहा बना देते हैं। यही बात उन स्वयंसेवकों के लिए भी कही जा सकती है। कुछ भी हो इन लोगों की आस्था और ध्यान हमें यह प्रेरणा तो जरूर देता है कि इस संसार में कुछ भी असम्भव नहीं है और विश्वास सचमुच चमत्कार करने में सक्षम होता है।

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