सूत्रों के मुताबिक पाकिस्तान ने आर्थिक सहायता हासिल करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी IFM से सम्पर्क स्थापित किया है। अमेरिका को इस बात का संदेह है कि पाकिस्तान इस पैसे का इस्तेमाल चीन का कर्ज उतारने के लिए कर सकता है। यह जानकारी तब बाहर आई जब मर्कली ने मालपास से सवाल पूछते हुए कहा की क्या IFM के मुद्रा कोष का इस्तेमाल चीन का कर्ज उतारने के लिए किया जा रहा है तो बदले में मालपास का जवाब था कि पाकिस्तान कभी खुलकर कर्ज की शर्तों का ,ब्याज दर का और अवधि का खुलासा नहीं करता । पाकिस्तान पर चीन का 62 अरब डॉलर का कर्ज बकाया है जिसे चुकाने के लिए उसने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से 12 अरब डॉलर की आर्थिक सहायता अर्थात बेलआउट पैकेज की मांग की है लेकिन अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने अब साफ शब्दों में कह दिया है कि अब पाकिस्तान को IFM से लिये जा रहे खरबों के बेलआउट पैकेज में पारदर्शिता बरतनी होगा। इस साल की शुरुआत से ही अमेरिका ने पाकिस्तान के प्रति कठोर रवैया अपनाया है।
यह सारी जानकारी अंतरराष्ट्रीय मामलों के लिए ट्रेज़री के सचिव माल्यपास ने कांग्रेस की सुनवाई के दौरान सांसदों को दी। उन्होंने यह भी बताया कि IFM अभी पाकिस्तान दौरे से वापिस आया है और इस बात पर पूरा जोर दिया गया है कि पाकिस्तान ने जितना भी कर्ज IFM से लिया है उसमें पारदर्शिता होना बहुत जरूरी है। कभी पाकिस्तान और अमेरिका गहरे रिश्तों के लिए जाने जाते थे लेकिन अमेरिका की चीन के साथ सम्बंधों में आई दरार के कारण तथा आतंवादी संगठनों का साथ देने के कारण अब यह रिश्ता पहले जैसा नहीं रहा। अपनी दोगली नीतियों के कारण पाकिस्तान हमेशा ही मात खाता आया है।