रानी लक्ष्मीबाई की वीरता व पराक्रम का कोई तोड़ नहीं : सुनील पटेल

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Jhansi-Ki-Rani

खेड़ा कच्छवासा के सरदार पटेल युवा मंडल नेजपुर व सर्व समाज के युवाओं द्वारा रानी लक्ष्मीबाई की जयंती मनाई गई। युवाओं ने मौन रखकर रानी लक्ष्मीबाई को याद किया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि सुनील पटेल, विशिष्ट अतिथि उज्जवल आमलिया व अध्यक्षता शुभम सुथार ने की। मौके पर युवाओं ने लक्ष्मी बाई के शौर्य, पराक्रम को याद करते हुए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का संकल्प लिया। बतौर मुख्य अतिथि सुनील पटेल, नेजपुर ने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि रानी लक्ष्मीबाई की वीरता व पराक्रम का प्रतिमान अतुलनीय है। साल 1858 में जून का 17वां दिन था जब खूब लड़ी मर्दानी, अपनी मातृभूमि के लिए जान देने से भी पीछे नहीं हटी।

छोटी सी उम्र में माँ से बिछोड़ा

‘मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी’ अदम्य साहस के साथ बोला गया यह वाक्य बचपन से लेकर अब तक हमारे साथ है। साथ ही विशिष्ट अतिथि उज्जवल आमलिया ने बताया कि रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर, 1828 को बनारस के एक मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ। उन्हें मणिकर्णिका नाम दिया गया और घर में मनु कहकर बुलाया गया। 4 बरस की थीं, जब मां गुज़र गईं। पिता मोरोपंत तांबे बिठूर ज़िले के पेशवा के यहां काम करते थे और पेशवा ने उन्हें अपनी बेटी की तरह पाला।

संघर्षमय जीवन

अध्यक्षता कर रहे शुभम सुथार ने कहा कि लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी में 19 नवम्बर 1828 को हुआ था। उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था लेकिन प्यार से उन्हें मनु कहा जाता था। उनकी माँ का नाम भागीरथीबाई और पिता का नाम मोरोपंत तांबे था। मोरोपंत एक मराठी थे और मराठा बाजीराव की सेवा में थे। माता भागीरथीबाई एक सुसंस्कृत, बुद्धिमान और धर्मनिष्ठ साल की थी तब उनकी माँ की मृत्यु हो गयी। क्योंकि घर में मनु की देखभाल के लिये कोई नहीं था इसलिए पिता मनु को अपने साथ पेशवा बाजीराव द्वितीय के दरबार में ले जाने लगे। जहाँ चंचल और सुन्दर मनु ने सब लोग उसे प्यार से “छबीली” कहकर बुलाने लगे। मनु ने बचपन में शास्त्रों की शिक्षा के साथ शस्त्र की शिक्षा भी ली। सन् 1842 में उनका विवाह झाँसी के मराठा शासित राजा गंगाधर राव नेवालकर के साथ हुआ और वे झाँसी की रानी बनीं। विवाह के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। सन् 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया। परन्तु चार महीने की उम्र में ही उसकी मृत्यु हो गयी। सन् 1853 में राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य बहुत अधिक बिगड़ जाने पर उन्हें दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी गयी। पुत्र गोद लेने के बाद 21 नवम्बर 1853 को राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गयी। दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया।

ब्रितानी राज ने अपनी राज्य हड़प नीति के तहत बालक दामोदर राव के ख़िलाफ़ अदालत में मुक़दमा दायर कर दिया। हालांकि मुक़दमे में बहुत बहस हुई, परन्तु इसे ख़ारिज कर दिया गया। ब्रितानी अधिकारियों ने राज्य का ख़ज़ाना ज़ब्त कर लिया और उनके पति के कर्ज़ को रानी के सालाना ख़र्च में से काटने का फ़रमान जारी कर दिया। इसके परिणामस्वरूप रानी को झाँसी का क़िला छोड़ कर झाँसी के रानीमहल में जाना पड़ा। पर रानी लक्ष्मीबाई ने हिम्मत नहीं हारी और उन्होनें हर हाल में झाँसी राज्य की रक्षा करने का निश्चय किया। भाविक पाटीदार,भूपेंद्र सिंह,हितेश पाटीदार, दर्शन यादव,पंकज यादव,हितेश पाटीदार, दर्शन यादव, हीना सुथार, महावीर सिंह, कोमल तेली, पायल कलाल, दिव्या जोशी, अंजनी भगोरा व आँचल यादव मौजूद थे।

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