राम मंदिर की आत्मकथा। कहानी अब तक..

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raam mandir kee aatmakatha

मैं राम मंदिर हूँ। मेरा इतिहास कोई एक या दो बरस का नहीं बल्कि सदियों पुराना है। कभी धर्म के नाम पर मैं विवाद का विषय रहा हूँ । मेरे जन्म से लेकर आज तक जो भी मेरे साथ हुआ ,वो सब मैं आज आपसे साँझा करने जा रहा हूँ। लग्भग 2100 साल पहले चंद्रगुप्त द्वितीय द्वारा काले रंग के कसौटी वाले चार स्तम्भों से मेरा निर्माण मेरा निर्माण रामजन्मभूमि पर करवाया। उस समय लोगों की गहरी आस्था मुझसे जुड़ गई। समय बदला और भारत पर मुगलों का शासन स्थापित हुआ। उस समय अपनी शक्ति के मद में अन्धे हुए बाबर के सेनापति मीर बांकी ने मुझे ध्वस्त कर दिया। मेरा स्वरुप तो खंडित हो गया लेकिन लोगों के दिल में मेरे प्रति अखंड आस्था ऐसे ही बनी रही। मुझे याद है कि उस समय किस तरह मेरे स्वरूप को बचाने के लिए सभी हिंदुओं ने लगभग 15 दिनों तक मीर बांकी के विरूद्ध संघर्ष किया लेकिन जुल्म की इंतिहा तो तब हो गई जब उस बेखौफ मीर बाँकी ने मुझे तोपों से उड़ा दिया। मेरी रक्षा करते हुए 176000 रामभक्तों ने अपने प्राणों की आहुति देदी।
फिर मेरी ही जगह पर उसने मस्जिद का निर्माण करवाना चाहा और जिसके लिए उसने मेरे ही टूटे हुए अवशेषों और टूटे स्तम्भों से मस्जिद का ढांचा खड़ा करवाया लेकिन यह विधि का विधान ही था कि उस मस्जिद की ना तो कभी मीनारें ही खड़ी हो पाई और ना ही वजू के लिए कोई स्थान बन पाया। मेरे अस्तित्व से हिंदुओं की आस्था और भी गहरी होती गई। 1528 से 1949 तक का उनका संघर्ष इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज है। इस ऐतिहासिक काल में मेरे निर्माण के लिए लगभग 76 बार संघर्ष हुआ जिसमें गुरु गोविंद सिंह जी महाराज तथा महारानी राजकुंवर जैसी कितनी ही महान विभूतियों ने अपना योगदान दिया। हाँ तो मैं आपको बता रहा था मीर बांकी द्वारा मुझे तोपों से उड़ा दिए जाने के बारे में। मीर बांकी ने मस्जिद का ढांचा तो तैयार करवा दिया लेकिन कभी भी कोई वहां अज़ान नहीं दे पाया।औरंगजेब के समय में समर्थ गुरु रामदास जी महाराज के शिष्य वैष्णवदास जी ने मेरी रक्षा के हेतु30 बार आक्रमण किए।1640 ईस्वी में औरंगजेब ने उन पर हमला करने के लिए जाबांज खान के नेतृत्व में सेना भेजी जिसका  मुकाबला साधुओं की टोली ने सात दिन तक किया और जहां मेरा निर्माण हुआ उस भूमि की रक्षा के लिए मर मिटने को तैयार रहे। होते भी क्यों ना उनका विश्वास और श्रद्धा जो मुझसे जुड़ी थी। उसके बाद 1680 में सैय्यद हसन अली को 50000 सैनिकों की सेना के साथ और तोपखाने के साथ पूरी रामजन्मभूमि को नष्ट करने के लिए भेजा गया।
लेकिन गुरु गोविंद सिंह जी तथा गुरु वैष्णव दास जी के नेतृत्व में हिंदुओं ने एक साथ मिलकर मुगल सेना के पांव उखाड़े और इस हमले में सैयद हसन मारा गया। उसके बाद जब भारत में अंग्रेजी हुकूमत अपनी जड़ें जमा चुकी थी। अंग्रेजी कानून ने इस विवाद को सुलझाने के लिए एक फैसला दिया जिसके तहत उस जगह के
बीचों-बीच आंतरिक और बाहरी परिसर में लोहे की तार लगाकर अलग-अलग प्रार्थना करने की इजाजत दी। 1885 में पहली बार यह मामला फैजाबाद अदालत में पहुंचा। जहां महंत रघुबीर दास ने राम मंदिर निर्माण के लिए जमीन हेतु याचिका दर्ज की। फिर दिन आया 23 दिसम्बर 1949 का । इस दिन मध्यरात्रि के समय गुम्बद के ढांचे के नीचे से रामलला को बाहर निकाला गया और हिंदुओं ने उस स्थान पर पूजा करनी शुरू कर दी लेकिन मुसलमानों ने कभी उस जगह नमाज नहीं पड़ी। 1950 में फिर एक याचिका दर्ज हुई जिसमें रामलला की विशेष पूजा अर्चना की इजाज़त मांगी गई। 1959 में फिर एक और याचिका दर्ज हुई जिसमें निर्मोही अखाड़े ने विवादित स्थल हस्तांतरित करने की प्रार्थना की।1961 में सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड ने बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक़ के लिए याचिका दर्ज की। 1984 में हिन्दू परिषद द्वारा रामजन्म भूमि के द्वार का ताला खोलने हेतु जनजागरण यात्राएं शुरू की गई लेकिन उसी दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की निर्मम हत्या के कारण हुए सांप्रदायिक दंगों की वजह से इन्हें स्थगित करना पड़ा।

1986 में फैजाबाद के दंडाधिकारी ने जहां रामजन्मभूमि के द्वार खोलने के आदेश दिया वहीं मुस्लिमों ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया। लेकिन फिर भी मंदिर और मस्जिद के विवाद का कोई हल नहीं निकला। 1989 में विश्व हिंदू परिषद ने रामशिला पूजन कार्यक्रम आयोजित किया जिसमें लगभग 6 करोड़ लोगों ने भाग लिया। देश-विदेश से लगभग 275000 रामशिलाएं अयोध्या पहुंची और इसी वर्ष रामलला विराजमान नाम से एक और मुकद्दमा दायर हुआ।1990में इस विवाद ने और भी तूल पकड़ ली जब मंदिर निर्माण हेतु कारसेवा आह्वान का ऐलान किया गया।इस वर्ष हजारों रामभक्तों ने सभी बाधाओं को पार कर अयोध्या में प्रवेश किया और विवादित मस्जिद के ढांचे पर भगवा फहरा दिया।उस समय मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया जिसमें बहुत से कारसेवक मारे गए। इसके बाद मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव जी को अपना इस्तीफा भी देना पड़ा।1992 में साम्प्रदायिक दंगों की आग अनगिनत लोगों को फिर निगल गई। फिर 2003 में उच्च न्यायालय ने एक फैसला सुनाया जिसके अंतर्गत भारतीय पुरातत्व विभाग को विवादित स्थल की खुदाई करने के लिए कहा गया। खुदाई के दौरान वहां मेरे यानी राममंदिर के होने के प्रमाण मिले।

2005 में आतंकियों ने मुझ पर हमला किया जिसमें सीआरपीएफ के कुछ जवान भी मारे गए लेकिन मरते-मरते भी उन्होंने आतंकियों को मार गिराया। 2010 में फिर हाईकोर्ट के अंदर हिन्दू और मुस्लिम दोनों पक्षों की बहस हुई और अगली तारीख मुकद्दमे के लिए मुक़र्रर की गई। फिर 30 सितंबर को फैसले की घड़ी आई जिसमें विवादित जमीन को रामजन्म भूमि करार दिया और इसे तीन हिस्सों में बाँट दिया।  लेकिन 2011में सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले पर फिर रोक लगा दी। 2013 में सुब्रमण्यम स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई। 2016 में रामजन्मभूमि के सबसे उम्र दराज मुद्दई हाशिम अंसारी की मौत हो गई। 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस फ मुद्दे को आपसी बातचीत से ही सुलझाया जा सकता है। उसके बाद से लगातार यह मामला लंबित होता जा रहा है। मैंने सालदरसाल इंतज़ार किया और अब भी इसी उम्मीद में हूँ कि कब मुझे मेरा अस्तित्व मिलेगा और कब यह विवाद शांत होगा।

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